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Indira Gandhi emergency/period,reason,effect,summary

REALTY OF EMERGENCY 



    Indira Gandhi emergency क्यों लगाई थी ?


    साल था 1975 भारत के पंतप्रधान देशभर मे घोषना कर देती हे की देश मे Emergency चालू हो गई हे और आगले दो सालो के लिये लोगोके मौलिक अधिकार छिन लीये जाते हे. ढेरों विरुद्ध पार्टी के नेताओं को जेल में डाल दिया जाता है। इतिहास के इस हिस्से को काला धब्बा माना जाता है भारतीय लोकतंत्र पर. लेकिन आखिर क्या कारण था Indira Gandhi[1] emergency डिक्लेयर करने के लिए? क्यों इसे किया गया था? आखिर क्यों इसे इतना खौफनाक माना जाता है? आज के इस विषय में हम इन्हीं सवालों को गहराई से जानने की कोशिश करते हैं।

    भारत में कितनी बार आपत्कालीन स्थिती लगाई है?




    इससे पहले भारत मैं साल 1962 INDO CHINA WAR और साल 1971 को INDO PAKISTAN WAR भारत में आपातकालीन स्थिति लगाई गई थी। हालांकि साल 1975 कि आपातकालीन स्थिति इन दोनों से अलग थी क्योंकि इसके पीछे एक कारन नही था बल्की कई सारे घटनाएँ थी घटनाओं का क्रम था। इसकी वजह से आपातकालीन स्थिति लगाई गई थी आपातकालीन स्थिति लगाने की घटनाओं का क्रम शुरू होता है साल 1969 मे जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी 5 साल सत्ता में रहने के लिए प्लान बनाया जा रहा था।

    बैंक को कब और क़्यू नैशनलाइज किया गया?



    भारत में बैंक राष्ट्रीयकरण उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसमें भारत सरकार ने भारत के प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों को दो चरणों में नियंत्रित किया- पहले 1969 में और फिर 1980 में। बैंकों के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य सामाजिक कल्याण, आर्थिक विकास, और यह सुनिश्चित करना कि बैंक आम लोगों की जरूरतों को पूरा करें।

    1969 में, भारत सरकार ने 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, जिनके पास देश की 85% बैंक जमा राशि थी। कृषि, उद्योग और व्यापार के विकास को बढ़ावा देने और ग्रामीण आबादी को बैंकिंग सुविधाएं प्रदान करने के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। जिन बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया उनमें इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, देना बैंक, इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, सिंडिकेट बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं। , यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और यूको बैंक।

    बैंकों के राष्ट्रीयकरण का दूसरा चरण 1980 में हुआ, जब सरकार ने छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, जो मिलकर भारत के 91% बैंकिंग क्षेत्र को नियंत्रित करते थे। इन बैंकों में आंध्रा बैंक, कॉर्पोरेशन बैंक, न्यू बैंक ऑफ इंडिया, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, पंजाब एंड सिंध बैंक और विजया बैंक शामिल हैं।

    भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण वित्तीय समावेशन प्राप्त करने और आर्थिक असमानता को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने बैंकिंग सेवाओं की पहुंच को बैंक रहित आबादी तक पहुंचाने में मदद की, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। इसने जमाराशियों को जुटाने और उन्हें अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों की ओर मोड़ने में भी मदद की।
    साल 1969 में कांग्रेस पार्टी तय करती है कि 14 प्राइवेट बैंको को नैशनलाइज किया जाएगा इसका मतलब सरकार उन बैंको का ताँबा अपने पास ले लेगा उन प्राइवेट कंपनियों के पास से बस इस फैसले से बहुत से बड़े बिजनेसमैन जैसे की जेआरडी रतन टाटा खुश नहीं थी 18 जुलाई 1969 को फैसला लिया जाता है की इस बिल को संसद में पास किया जाएगा बाद में सरकार दिखती है कि संसद सत्र 21 जुलाई से शुरू होने वाला है। और पंतप्रधान अपने पद को 20 जुलाई को छोड़ने वाले हैं। अध्यादेश बड़ी जल्दी में बनाया जाता है वो रातों रात इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर लिए जाते हैं संसद सत्र से पहले। Indira Gandhi कहना था कि अगर हम इन बैंको को नैशनलाइज कर देंगे तो ये बैंक कोने कोने में जाकर अपनी सेवाएं दे सकेंगी गरीब से गरीब नागरिको को इन चीजों का लाभ मिलेगा।

    इंदिरा गांधी और सुप्रिम कोर्ट की लडाई.




    अब इस फैसले से बैंक के लोग खुश नहीं थे तब उस वक्त एक बैंक था सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया उस बैंक के शेयर होल्डर थे R.C.Cooper वो सुप्रीम कोर्ट चले जाते हैं इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इन्हें जीत हासिल होती है और सरकार के फैसले को गलत ठहरा दिया जाता है।

    अब यहाँ से शुरू होती है Indira Gandhi[2] सरकार ओर सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई अगले साल फिर Indira Gandhi सरकार अध्यादेश ले कर आयी संविधान में और इस अध्यादेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया कुछ सालों बाद फिर से एक ओर केस हुआ, इंदिरा गाँधी सरकार पूरा इस PRIVY PURSE को ले कर बाद में फिर कोर्ट ने इन फैसलों को गलत ठहरा दिया। Indira Gandhi सरकार ने फिर से संसद सत्र में अध्यादेश लाया और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बदल दिया।

    ये कोर्ट और इंदिरा गाँधी सरकार के बीच की लड़ाई बताने की कोशिश इसलिए कर रहा हूँ की आगे जाके यही छोटे बड़े कारण थे इंदिरा गाँधी जी को प्रभावित आपातकालीन स्थिति को लगाने के लिए।
    साल 1971 का चुनाव.

    साल 1971 वक्त में आते है ये वो साल है जब इंदिरा गाँधी फिर से चुनाव जीत जाती है। और इस बार ये बड़े प्रभावी पंतप्रधान बन जाती है। इनके अंदर सत्ता का केंद्रीकरण देखने को मिलता है और अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्री को ये देखकर वो चुनती थी कि उनके करीब कौन था 1971 वो साल था जब भारत और पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था इसकी वजह से भारत के अर्थव्यवस्था पर असर भी पड़ गया था। मुद्रा स्फ़ीति बड़ी आवश्यक वस्तुएं के दाम बढ़ गए थे गौर उस टाइम कांग्रेस पार्टी इतनी पावरफुल बन चुकी थी उसके अंदर भ्रष्टाचार देखने को मिल रहा था। इंदिरा गाँधी के खुद के प्रमुख सचिव P.N.HAKSAR इस चीज़ को बताया था। राज्यों में तो भ्रष्टाचार की बहुत बुरी हालत थी।

    साल 1974 गुजरात के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल बड़ा घोटाला:-





    साल 1974 में गुजरात के मुख्यमंत्री CHIMANBAHAI PATEL उनका एक बड़ा घोटाला सामने आया सड़कों पर आकर नागरिकों ओर विद्यार्थियों ने आकर विरोध किया बसें जला दी गई दुकानों को लूटा गया और पुलिस पर हमला किया गया। इस चीज़ को नवनिर्माण मूवमेंट नाम दिया गया था। गुजरात के जनता की तरफ से ऐ मांग थी कि उस वक्त के राज्य सरकार को भंग कर दिया जाए इंदिरा गाँधी जी के पास दूसरा कोई चारा नहीं था इसलिए उन्होंने वहाँ की राज्य सरकार को 1974 को भंग कर दिया। बस ये तो एक शुरुआत थी इसके 1 साल पहले 1973 को भयानक तेल की किल्लत देखने को मिलती है दुनिया में इसकी वजह से क्रूड ऑयल की कीमत 300% बढ़ जाती है एक बार फिर से आम आदमी के जेब पर असर पड़ता है। उसी साल जैसे गुजरात में विरोध हुआ था वैसा ही विरोध बिहार में देखने को मिलता है ओर इस आंदोलन को लीड करते हैं J.P.Narayan के द्वारा अहिंसक विरोध किया जाता है इंदिरा गांधी के सरकार के खिलाफ़। ओर मांग की जाती है कि बिहार की सरकार को भी भंग किया जाए।


    George Fernandes 3 दिन की रेलवे हड़ताल:-




    इसके अलावा दूसरे लीडर George Fernandes 3 दिन की रेलवे हड़ताल करवातें हैं रेलवे कर्मचारियों के लिए अच्छी काम की परिस्थिति और अच्छी तनख़्वाह मिले इसके लिए। 17,00,000 से ज्यादा कर्मचारी इस आन्दोलन में सहभागी होते हैं। उस वक्त के लिए पूरी दुनिया के लिए ओ सबसे बड़ी हड़ताल बन जाती है। इस बार जो गुजरात में सत्ता भंग किया था वैसा ओ बिहार में नहीं करती बल्कि वो कहती है ये जो हो रहा है वो प्रजातंत्र खत्म कर रही है।

    लगातार होने वाले हड़ताल, मुद्रास्थिति की गिरती हालत, भ्रष्टाचार के मामले,देश में हो रहे दंगे। आप सोच सकते होंगे 1975 में देश की हालत क्या होगी
    अल्लाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला

    इन सबके बीच इंदिरा गाँधी[3] जी को बड़ा झटका लगता है। अल्लाहाबाद हाई कोर्ट की तरफ से पिछले दो सालों से अल्लाहाबाद हाईकोर्ट में केस चल रहा था इंदिरा गाँधी जी के खिलाफ़ इस केस को दर्ज किया था समाजवादी चुनाव उम्मीदवार RAJ NARAIN इन्होंने साल 1971 में इंदिरा गाँधी के खिलाफ़ इलेक्शन में खड़े थे समान सीट पर रायबरेली मैं है राजनारायण ने सीधा आरोप लगाया इंदिरा गाँधी जी पर की उन्होंने अपनी सीट गलत तरीके से जीती है। उन्होंने मतपत्र में हेरफेर किया है। 14 क्राइम रिपोर्ट दर्ज किए गए इंदिरा गाँधी के खिलाफ़ उसमें से दो क्राइम के लिये गुनेगार ठहराया गया। पहिला गुन्हा था कि उन्होंने यूपी सरकार के द्वारा एक ऊँचा सा स्टेज बनाया था अपने भाषण के लिए और दूसरा क्राइम था कि उनके इलेक्शन एजेंट yashpal Kapoor सरकारी कर्मचारी रहे थे इलेक्शन के दौरान जो कि गलत था। सिर्फ इन दो गुनाहों की वजह से इंदिरा गाँधी की लोकसभा सीट खारिज कर दी थी। ओर इंदिरा गाँधी को लोकसभा से हटाया गया

    बाद में इंदिरा गाँधी जी अल्लाहाबाद कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में ले गयी। विपक्षी नेताओं ने इस मौके का पूरे पूर फायदा उठाया सड़क पर उतर गए और विरोध करने लगे कि करप्ट प्राइम मिनिस्टर को कुर्सी से हटाया जाए। मोरारजी देसाई ने कहा था कि अब वो पहल शुरू हो रही है कांग्रेस के खिलाफ़ करो और मरो वाली.

    सुप्रीम कोर्ट का फैसला:-


    अल्लाहाबाद का फैसला 12 जून 1975 में आया था 24 जुन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील सुनी तब जजों ने कहा कि उनकी सारी विशेषाधिकार छीने जा सकते हैं वो मतदान नहीं कर सकती किसी तरह की चुनाव में नई खड़ी हो सकती अगले 6 सालों के लिए। लेकिन वो अगले कोर्ट के तारीख तक पंतप्रधान बनी रह सकती है। कोर्ट के कहने के बाद सड़कों पर हल्ला मच गया विरोधियो का आवाज और भी ज्यादा बढ़ गया कुछ कांग्रेस के नेता भी सड़कों पर उतर गए इंदिरा गाँधी जी को बचाने के लिए जो इंदिरा गाँधी के खिलाफ़ रैली निकाली जा रही थी उस में से एक थीं J.p.narayan के द्वारा निकाली जा रही थी उन्होंने विद्यार्थियों को कहा है कि बाहर निकलो और इस चीज़ का विरोध करो। उन्होंने पुलिस और से कहा कि सरकार की सुनना बंद करें। और इंडियन आर्मी और इंडियन फोर्स से कहा कि वो सरकार की सुनना बंद कर दें। ये एक तरफ से civil disobedience था इसका मतलब होता है internal disturbance.

    आपातकालीन स्थिति किन कारणों से लगाई जा सकती है?


    अब बात करते हैं कि आपातकालीन स्थिति किन तीन कारणों से लगाई जा सकती है भारत में पहला कारण है अगर भारत किसी देश के साथ जंग पर जाएं । दूसरा कारण है अगर भारत पर किसी दूसरे देश से हमला किया जाए तो। और तीसरा कारण हे देश के अंदर कोई विद्रोह हो रहा हो तो इससे पहले जो दो आपातकालीन स्थितियां लगाई गई थी वो युद्ध के कारण लगाए गए थे। अब ये साल 1975 वाली अपातकालीन स्थिति को Internal disturbance नाम दिया गया।

     इंदिरा गाँधी इमरजेंसी कब लागू करी गई?



    25 जून 1975 को इंदिरा गाँधी अपने कुछ मंत्रियों के साथ बैठकर सलाह मशविरा करती है उस वक्त के भारत के राष्ट्रपति FAKHRUDDIN ALI AHMED लेटर भेज देती है कि वो भारत में इंटरनल डिस्टर्बेंस की वजह से भारत में इमरजेंसी लगाए जाए। और वो ऐसा कर देते है 25 जून 1975 की रात को। कुछ ही घंटों के अंदर ढेरों विरोधी विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया जाता है। moraji Desai, jp Narayan, Lk.advani,charan singh जैसे बड़े नेताओं को सरकारे लाइट बंद करवा देती है न्यूज़पेपर वालों ऑफिसों की दिल्ली मे उसी रात को ताकी कोई इस खबर को छाप ना सके और अगली सुबह रेडियो पर घोषणा की जाती है इंदिरा गाँधी की तरफ से की राष्ट्रपति ने आपातकालीन की घोषणा की है। वैसे तो कारण आपने बहुत सारे देखिये हे

     

     भारतीय लोकतंत्र काला दिंन (black day) क्या है?



    अगले दो सालों में जो होता है वो अपने आप में ऐतिहासिक है इस दिन को भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला दौर कहा जाता है। लोगों के अधिकारों को छीना जाता है और जो इस चीज़ का विरोध करते हैं उन्हें गिरफ्तार किया जाता है। उस वक्त एक लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जाता है कई विरोधी पक्ष नेता उस वक्त वहाँ से निकल जाते हैं। और इलेक्शन्स आगे ढकेल दी जाती है। RSS और जमात ए इस्लामी जैसे संस्था को बंद किया जाता है। और जो कांग्रेसी नेता थे जो इस फैसले के विरोध में थे और इंदिरा गाँधी जी के खिलाफ़ जा रहे थे, उन्हें पार्टी से निकाल कर गिरफ्तार किया जाता है। येक और भयानक चीज देखणेको मिलती हे यहा पर की लोगोकी नस्बंदी की जाती हे संजय गांधी दुअरा लोक संख्या नियंत्रीत करने के लिये.

    कुच लोगोकी राय मे कुच अच्छी चीजे भी देखने को मिलती थी जैसी कि ट्रेन टाइम पर आती थी सारे लोग टाइम पर काम करते थे।

    आपत्कालीन स्थिती को बन्द कब किया जाता हे?


    21 मार्च 1977 को आपत्कालीन स्थिती को बन्द किया जाता हे और इलेक्शन्स बुलाए जाते हैं। इंदिरा गाँधी और उनके बेटे संजय गाँधी दोनों सीट हार जाते हैं। और जनता पार्टी पहली बार सत्ता में आ जाती है। पहली बार होता है जो कांग्रेस के अलावा दूसरी पार्टी सत्ता में अति है। हालांकि बाद में सरकार ज्यादा दिन तक दिखती नहीं है। और दोबारा इलेक्शन बुलाये जाते हैं. साल 1980 मैं और इंदिरा गाँधी दोबारा सत्ता में आ जाती है। अगर आपको मेरा आर्टिकल अच्छा लगे तो दोस्तों को भेजो।

    Q&A:-


    1. Indira Gandhi Emergency क्या था और इसे क्यों घोषित किया गया था?
    उत्तर: इंदिरा गांधी आपातकाल 1975 से 1977 तक 21 महीने की अवधि थी, जिसके दौरान आंतरिक राजनीतिक अशांति और आर्थिक समस्याओं के कारण भारत में नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया गया था।

    2. Indira Gandhi Emergency के प्रमुख परिणाम क्या थे?
    उत्तर: इंदिरा गांधी आपातकाल के प्रमुख परिणाम व्यापक मानवाधिकारों का उल्लंघन, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन, विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं की सामूहिक गिरफ्तारी, जबरन नसबंदी अभियान और भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट थे।

    3. Indira Gandhi Emergency पर भारतीय जनता की क्या प्रतिक्रिया थी?
    उत्तर: बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों और सविनय अवज्ञा अभियानों के साथ, भारतीय जनता ने बड़े पैमाने पर इंदिरा गांधी आपातकाल का विरोध किया। इस अवधि के दौरान कई लोकतांत्रिक संस्थानों से समझौता किया गया था।

    4. आपातकाल के लिए इंदिरा गांधी का क्या औचित्य था?
    उत्तर: इंदिरा गांधी ने दावा किया कि देश में कानून और व्यवस्था बहाल करने और भ्रष्टाचार और आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए आपातकाल आवश्यक था।

    5. क्या इंदिरा गांधी आपातकाल का भारतीय राजनीति पर कोई दीर्घकालीन प्रभाव पड़ा?
    उत्तर: इंदिरा गांधी आपातकाल का भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा था, इस अवधि के दौरान शुरू की गई कई नीतियां आज तक विवादास्पद हैं। इसने भारत में लोकतांत्रिक सिद्धांतों और कानून के शासन के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों के महत्व पर भी प्रकाश डाला।

    6: इंदिरा गांधी ने आपातकाल क्यों लगाया था?
    उत्तर 2: इंदिरा गांधी ने विपक्ष पर नकेल कसने और सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए आपातकाल लगाया था। उसने कारणों के रूप में राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए खतरे का हवाला दिया।

    7: इंदिरा गांधी आपातकाल के क्या परिणाम हुए थे?
    उत्तर 3: इंदिरा गांधी आपातकाल ने राजनीतिक विरोध के दमन और नागरिक स्वतंत्रता के हनन के साथ, भारत में लोकतंत्र के क्षरण का नेतृत्व किया। इससे भ्रष्टाचार और आर्थिक ठहराव में भी वृद्धि हुई।

    8: इंदिरा गांधी ने आपातकाल कैसे हटाया?
    उत्तर 4: व्यापक जन विरोध और चुनावी हार का सामना करने के बाद इंदिरा गांधी ने 1977 में आपातकाल हटा लिया। उसने नए सिरे से चुनाव कराने का आह्वान किया और सत्ता से हट गई।

    9: इंदिरा गांधी आपातकाल से क्या सबक सीखे जा सकते हैं?
    उत्तर 5: इंदिरा गांधी आपातकाल अधिनायकवाद के खतरों और लोकतांत्रिक संस्थानों और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करने की आवश्यकता पर एक सतर्क कहानी के रूप में कार्य करता है। यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के महत्व और लोकतंत्र की रक्षा में सूचित नागरिकों की भूमिका को रेखांकित करता है।

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    धन्यवाद!

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